आदित्य-L1 मिशन ने सौर ज्वाला का ऐतिहासिक अवलोकन किया
भारत के पहले अंतरिक्ष-आधारित सौर मिशन आदित्य-L1 ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। 22 फरवरी 2025 को, आदित्य-L1 के सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) ने पहली बार सौर ज्वाला (solar flare) के ‘कर्नेल’ की छवि कैद की, जो सूर्य के निचले वायुमंडल में स्थित है। यह खोज सौर गतिविधियों और उनके पृथ्वी पर प्रभाव को समझने में मदद करेगी।
इस खोज का महत्व
- यह पहली बार हुआ है कि सूर्य के निचले वायुमंडल में सौर ज्वाला के ‘कर्नेल’ को देखा गया है, जिससे सूर्य की गतिविधियों को समझने में नई जानकारी मिलेगी।
- इसे निकट-अतिरिक्त बैंगनी (Near Ultraviolet – NUV) तरंगदैर्ध्य में रिकॉर्ड किया गया, जो आमतौर पर ऐसी खोजों के लिए कम उपयोग किया जाता है।
- यह खोज वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करेगी कि सूर्य के वायुमंडल में द्रव्य और ऊर्जा कैसे प्रवाहित होते हैं।
आदित्य-L1 मिशन के बारे में
- भारत का पहला सौर वेधशाला (solar observatory) मिशन, जिसे 2 सितंबर 2023 को लॉन्च किया गया था।
- यह पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित लैग्रेंज पॉइंट-1 (L1) पर 6 जनवरी 2024 को पहुंचा।
- यह ISRO का दूसरा प्रमुख अंतरिक्ष वेधशाला मिशन है, जो AstroSat के बाद आया है।
वैज्ञानिक उपकरण (पेलोड्स)
आदित्य-L1 कई वैज्ञानिक उपकरणों से लैस है। इसका मुख्य उपकरण SUIT (Solar Ultraviolet Imaging Telescope) है, जो निकट-अतिरिक्त बैंगनी (NUV) तरंगदैर्ध्य में सूर्य की छवियों को कैद करता है। इससे सौर ज्वालाओं और अन्य सौर घटनाओं का बारीकी से अध्ययन संभव हो रहा है।
सौर ज्वाला अवलोकन में सफलता
22 फरवरी 2025 को आदित्य-L1 ने एक X6.3 श्रेणी की शक्तिशाली सौर ज्वाला का अवलोकन किया। इस खोज के प्रमुख निष्कर्ष:
- इसने सौर कोरोना (solar corona) के तापमान में होने वाले परिवर्तनों की नई जानकारी दी।
- इससे यह पुष्टि हुई कि सौर ज्वाला की ऊर्जा और तापमान में परिवर्तन के बीच संबंध है, जिससे मौजूदा वैज्ञानिक सिद्धांतों को और मजबूती मिली।
- यह अध्ययन सूर्य के विस्फोटक व्यवहार को समझने में मदद करेगा और इससे जुड़े संभावित जोखिमों को कम करने की दिशा में काम किया जाएगा।
अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) पर प्रभाव
सौर ज्वालाएं और कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) पृथ्वी के अंतरिक्षीय वातावरण पर प्रभाव डाल सकते हैं। आदित्य-L1 की खोजें:
- सौर तूफानों (solar storms) और उनके संचार उपग्रहों व पावर ग्रिड पर प्रभाव को समझने में मदद करेंगी।
- अंतरिक्ष में होने वाली घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए मॉडल विकसित करने में सहायक होंगी।
- भविष्य में सौर गतिविधियों की भविष्यवाणी करने की क्षमता को बढ़ाकर अंतरिक्ष अभियानों को अधिक सुरक्षित बनाएगी।
सौर भौतिकी (Solar Physics) में योगदान
यह मिशन सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) और प्लाज्मा गतिकी (plasma dynamics) को समझने में मदद कर रहा है, जिससे:
- भौतिकी और खगोल भौतिकी (Astrophysics) में नई खोजें हो सकती हैं।
- सतत (sustainable) फ्यूजन ऊर्जा पर शोध को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि सूर्य स्वाभाविक रूप से एक विशाल फ्यूजन रिएक्टर है।
- सूर्य की गतिविधियों का अध्ययन कर वैज्ञानिक सौर तूफानों और अंतरिक्ष मिशनों के लिए सुरक्षा उपायों में सुधार कर सकेंगे।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
आदित्य-L1 मिशन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सहयोग किया गया है। इसमें विभिन्न देशों के अनुसंधान संस्थानों और अंतरिक्ष एजेंसियों ने योगदान दिया है:
- नासा (NASA) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने मिशन के लिए तकनीकी परामर्श और डेटा विश्लेषण में सहायता की है।
- विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वेधशालाओं ने सौर गतिविधियों के समन्वित अवलोकन के लिए ISRO के साथ मिलकर काम किया है।
- इस मिशन से प्राप्त डेटा वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण संसाधन साबित होगा, जिससे सूर्य संबंधी अनुसंधान को नई गति मिलेगी।
भविष्य की संभावनाएं
आदित्य-L1 मिशन का आगे का कार्यक्षेत्र और भी व्यापक है। इसमें अन्य वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से सूर्य की आंतरिक संरचना और उसमें हो रही गतिविधियों की निरंतर निगरानी शामिल है। आने वाले वर्षों में इस मिशन से प्राप्त डेटा सौर गतिविधियों के अध्ययन में नया मील का पत्थर साबित हो सकता है।
आदित्य-L1 मिशन सौर अनुसंधान में नए आयाम स्थापित कर रहा है और भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी बना रहा है।
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