आर्द्रभूमियाँ पृथ्वी पर सबसे उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। ये विविध प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करती हैं और बाढ़ नियंत्रण, कार्बन भंडारण, तथा जल शुद्धिकरण जैसी महत्वपूर्ण पर्यावरणीय सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं। फिर भी, शहरीकरण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण आर्द्रभूमियाँ तेजी से नष्ट हो रही हैं।
आर्द्रभूमि संरक्षण को मुख्यधारा में शामिल करने की आवश्यकता क्यों है?
- जैव विविधता के केंद्र
आर्द्रभूमियाँ कई प्रकार के पौधों और जीवों, विशेष रूप से प्रवासी पक्षियों, मछलियों और उभयचरों का समर्थन करती हैं। इनका क्षरण उन प्रजातियों के लिए खतरा उत्पन्न करता है जो इन पारिस्थितिक तंत्रों पर निर्भर हैं।
उदाहरण: राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जो एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, अपने पक्षी जीवन के लिए प्रसिद्ध है। - बाढ़ नियंत्रण और जलवायु विनियमन
मैंग्रोव वन और बाढ़ क्षेत्र की आर्द्रभूमियाँ अतिरिक्त बाढ़ के पानी को अवशोषित कर प्राकृतिक आपदाओं जैसे चक्रवात और सुनामी के प्रभाव को कम करती हैं। ये कार्बन भंडार के रूप में भी कार्य करती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायता मिलती है। - जल शुद्धिकरण और भूजल पुनर्भरण
आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक जल फिल्टर की तरह काम करती हैं, प्रदूषकों और अवसादों को रोकती हैं और भूजल स्तर को पुनर्भरण करती हैं। - रोज़गार और अर्थव्यवस्था
लाखों लोग, विशेष रूप से मछुआरा समुदाय, अपनी आजीविका के लिए आर्द्रभूमियों पर निर्भर हैं।
उदाहरण: ओडिशा की चिल्का झील 1,50,000 से अधिक मछुआरों का समर्थन करती है। - सांस्कृतिक और सौंदर्यात्मक महत्व
कई आर्द्रभूमियाँ सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और स्थानीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं।
भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण की चुनौतियाँ
- शहरीकरण और अतिक्रमण
अनियोजित शहरी विस्तार प्राकृतिक जल निकासी को बाधित करता है और अतिक्रमण की समस्या को बढ़ाता है।
उदाहरण: मध्य प्रदेश की भोज आर्द्रभूमि, भोपाल के तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण खतरे में है। - औद्योगिक प्रदूषण
अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक कचरे का निर्वहन जल गुणवत्ता और जलीय जैव विविधता को प्रभावित करता है।
उदाहरण: दिल्ली की यमुना बाढ़ क्षेत्र की आर्द्रभूमियाँ औद्योगिक प्रदूषण से प्रभावित हैं। - जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
बढ़ता तापमान और अनियमित वर्षा पैटर्न आर्द्रभूमियों के जल संतुलन को बाधित करते हैं।
उदाहरण: जम्मू-कश्मीर की वुलर झील में ग्लेशियर पिघलने और बादल फटने से जल स्तर में उतार-चढ़ाव देखा गया है। - अनियंत्रित पर्यटन और अत्यधिक दोहन
अधिक मानवीय गतिविधियाँ प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुँचाती हैं।
उदाहरण: महाराष्ट्र में जुगनू निवास स्थान अनियंत्रित पर्यटन के कारण नष्ट हो रहे हैं। - आक्रामक प्रजातियों का प्रसार
गैर-स्थानीय प्रजातियाँ, जैसे जल कुमुदिनी, आर्द्रभूमियों को बाधित कर जैव विविधता और स्थानीय आजीविका को नुकसान पहुँचाती हैं।
उदाहरण: केरल की वेम्बनाड झील जल कुमुदिनी के अत्यधिक विस्तार के कारण प्रभावित हो रही है। - जागरूकता और नीति कार्यान्वयन की कमी
संरक्षण कानूनों के बावजूद, उनका क्रियान्वयन कमजोर है।
उदाहरण: पूर्वी कोलकाता की आर्द्रभूमियाँ, जो रामसर स्थल हैं, खराब प्रवर्तन के कारण क्षति का सामना कर रही हैं।
आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए पहलें
- कानूनी संरक्षण
भारतीय वन अधिनियम (1927), वन (संरक्षण) अधिनियम (1980), और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) के तहत आर्द्रभूमियों को सुरक्षा प्राप्त है। - भारत की आर्द्रभूमि पोर्टल (MoEFCC)
यह प्लेटफॉर्म आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए डेटा, प्रशिक्षण सामग्री और राज्यवार डैशबोर्ड प्रदान करता है। - राष्ट्रीय जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण योजना (NPCA)
यह योजना आर्द्रभूमियों और झीलों के संरक्षण पर केंद्रित है। - राष्ट्रीय आर्द्रभूमि दशक परिवर्तन एटलस (SAC)
यह पिछले दशक में आर्द्रभूमियों में हुए परिवर्तनों को दर्शाता है। - नमामि गंगे के साथ एकीकरण
जल शक्ति मंत्रालय आर्द्रभूमि संरक्षण को नमामि गंगे कार्यक्रम के साथ जोड़ता है। - अमृत धरोहर योजना (केंद्रीय बजट 2023-24)
इस योजना का उद्देश्य आर्द्रभूमियों का सतत उपयोग बढ़ाना है। - राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2017-2031)
इसमें आर्द्रभूमियों के संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है। - आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017
यह आर्द्रभूमियों की सुरक्षा के लिए एक नियामक ढांचा प्रदान करता है।
भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण की प्रमुख रणनीतियाँ
- शहरी योजना में आर्द्रभूमि संरक्षण को शामिल करना
उदाहरण: अमृत सरोवर मिशन शहरी जल निकायों का पुनरुद्धार करता है। - कानूनी संरक्षण को सुदृढ़ करना
उदाहरण: असम में दीपोर बील आर्द्रभूमि पर सुप्रीम कोर्ट ने कचरा डंपिंग पर रोक लगाई। - पुनर्स्थापन और वैज्ञानिक अनुसंधान
उदाहरण: नमामि गंगे कार्यक्रम वैज्ञानिक तरीकों से आर्द्रभूमियों को पुनर्जीवित कर रहा है। - स्थानीय समुदायों की भागीदारी
उदाहरण: चिल्का विकास प्राधिकरण (CDA) स्थानीय मछुआरों को शामिल करता है। - सख्त नीति कार्यान्वयन
उदाहरण: जयपुर की मानसागर झील के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने संरक्षण उपाय लागू किए। - वित्तपोषण और प्रोत्साहन
उदाहरण: अमेज़न-ARGA समझौता (2025) महिलाओं को आर्द्रभूमि आधारित आजीविका में सहयोग करता है। - इको-टूरिज्म और सतत आजीविका
उदाहरण: मणिपुर की लोकटक झील में फ़्लोटिंग होमस्टे परियोजना। - वैज्ञानिक निगरानी और अनुसंधान
उदाहरण: ISRO का राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सर्वेक्षण (2022)।
भारत में आर्द्रभूमियाँ पारिस्थितिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए अनिवार्य हैं। सतत नीति और सामुदायिक भागीदारी से हम इन पारिस्थितिकी तंत्रों को सुरक्षित रख सकते हैं।
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