वन्यजीव और सुरक्षा: बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष

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मानव-वन्यजीव के बीच संघर्ष एक गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है और शहरीकरण व कृषि विस्तार हो रहे हैं, वैसे-वैसे वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास घटता जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ कि मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव बढ़ रहे हैं।

1. मानव-वन्यजीव संघर्ष क्या है?
जब मनुष्यों और जंगली जानवरों के बीच परस्पर क्रियाएं हानिकारक परिणाम उत्पन्न करती हैं, तो इसे मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict – HWC) कहा जाता है। यह संघर्ष मुख्यतः तब होता है जब वन्यजीव भोजन, पानी, या आश्रय के लिए मानव बस्तियों में घुस जाते हैं, जिससे फसलों, पशुधन, संपत्ति और कभी-कभी मानव जीवन को नुकसान पहुंचता है।

2. मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रमुख कारण

(a) वनों की कटाई और प्राकृतिक आवास का नुकसान

  • बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण जंगलों की कटाई हो रही है, जिससे वन्यजीवों का आवास नष्ट हो रहा है।
  • वन्यजीव भोजन और पानी की तलाश में मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं।

(b) कृषि और शहरीकरण का विस्तार

  • कृषि भूमि बढ़ाने के लिए जंगलों को काटा जा रहा है, जिससे वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच संपर्क बढ़ रहा है।
  • शहरीकरण के कारण जंगलों में सड़कें, रेलवे लाइनें और बांध बन रहे हैं, जिससे वन्यजीवों की आवाजाही बाधित हो रही है।

(c) अवैध शिकार और पशु व्यापार

  • अवैध शिकार से वन्यजीवों की आबादी घट रही है और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है।
  • कई वन्यजीवों को अवैध व्यापार के लिए मारा जाता है, जिससे उनकी प्रजातियाँ खतरे में पड़ रही हैं।

(d) जलवायु परिवर्तन

  • जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक संसाधनों में कमी आ रही है, जिससे वन्यजीव नए स्थानों की तलाश में मानव क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं।
  • गर्मी और सूखे के कारण हाथी और बाघ जैसे बड़े जानवर गांवों में प्रवेश कर रहे हैं।

3. प्रमुख मानव-वन्यजीव संघर्ष के उदाहरण

(a) भारत में हाथी-मानव संघर्ष

  • भारत में असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों में हाथी फसल नष्ट करने और मानव बस्तियों में घुसने की घटनाएँ आम हैं।
  • 2019-2023 के बीच लगभग 500 लोग हर साल हाथियों के हमले में मारे गए।

(b) बाघ और तेंदुए का खतरा

  • उत्तराखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बाघ और तेंदुए मानव बस्तियों में प्रवेश कर रहे हैं।
  • 2014-2019 के बीच भारत में 200 से अधिक लोग बाघों के हमले में मारे गए

(c) मगरमच्छ और ग्रामीण बस्तियाँ

  • ओडिशा और पश्चिम बंगाल में जलाशयों के पास रहने वाले लोग मगरमच्छों के हमलों का सामना कर रहे हैं।

(d) भालू और ग्रामीण क्षेत्रों में हमले

  • छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भालू के हमलों में कई लोग घायल होते हैं या मारे जाते हैं।

4. मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रभाव

(a) पर्यावरणीय प्रभाव

  • पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन आता है।
  • जैव विविधता घटती है।

(b) सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

  • किसानों की फसलें नष्ट होती हैं, जिससे उनकी आजीविका पर संकट आता है।
  • लोग डर के कारण जंगलों में जाने से बचते हैं, जिससे आजीविका प्रभावित होती है।

(c) वन्यजीव संरक्षण पर प्रभाव

  • कई बार लोग आत्मरक्षा में वन्यजीवों को मार देते हैं, जिससे उनकी प्रजातियों को खतरा होता है।
  • सरकार और वन विभाग को वन्यजीव संरक्षण के लिए अधिक संसाधन खर्च करने पड़ते हैं।

5. मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के उपाय

(a) प्राकृतिक आवासों का संरक्षण

  • वनों की कटाई रोकना और जैव विविधता को बनाए रखना।
  • वन्यजीव गलियारों (Wildlife Corridors) का निर्माण ताकि जानवर सुरक्षित रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकें।

(b) आधुनिक तकनीकों का उपयोग

  • जीपीएस ट्रैकिंग और ड्रोन तकनीक से वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखना।
  • इलेक्ट्रिक फेंसिंग और सौर ऊर्जा चालित बाड़ लगाकर मानव क्षेत्रों को सुरक्षित करना।

(c) स्थानीय समुदायों की भागीदारी

  • ग्रामीण समुदायों को वन्यजीवों के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना।
  • उन्हें वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना ताकि वे वन्यजीवों पर निर्भर न रहें।

(d) नीति और कानूनों को सख्ती से लागू करना

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को प्रभावी रूप से लागू करना।
  • अवैध शिकार और पशु व्यापार को रोकने के लिए कड़े कानून बनाना।

6. भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास

(a) परियोजनाएं और योजनाएँ

  • प्रोजेक्ट टाइगर (1973) – बाघों के संरक्षण के लिए।
  • प्रोजेक्ट एलीफेंट (1992) – हाथियों के संरक्षण के लिए।
  • वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 – वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कानून।
  • वन्यजीव गलियारे (Wildlife Corridors) – वन्यजीवों के सुरक्षित आवागमन के लिए।

(b) तकनीकी नवाचार

  • ईको-ब्रिज और अंडरपास का निर्माण ताकि वन्यजीव सड़कों को पार करते समय सुरक्षित रहें।
  • स्मार्ट कॉलर और ट्रैकिंग डिवाइस का उपयोग ताकि वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।
उदहारण के रूप में- 

केरल में जंगलों के भीतर, जंगल के पास स्थित इंसानी बस्तियों, और यहां तक कि गांवों के भीतर भी जंगली जानवरों के हमलों में हालिया मौतों ने राज्य में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को उजागर किया है। केरल ऐसा राज्य है, जहां लगभग 29 प्रतिशत भूमि पर जंगल स्थित हैं। सूखा और असामान्य गर्मी की स्थिति के मद्देनजर, इस संघर्ष को और बढ़ने से रोकने के लिए तुरंत प्रभावी उपायों की आवश्यकता है। यह संघर्ष अब एक राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दा बन चुका है। वन्यजीवों को प्रबंधित करने में राज्य सरकार की अक्षमता के लिए आलोचना की जा रही है। केरल इंडिपेंडेंट फार्मर्स एसोसिएशन (केआईएफए) जैसे समूह और कुछ चर्च वन्यजीवों की बढ़ती आबादी का हवाला देते हुए उन्हें मारने की वकालत कर रहे हैं। हालांकि, वन विभाग के आंकड़े एक अलग कहानी बताते हैं। कुल 18 प्रतिशत इंसानी मौतों का संबंध जंगली हाथियों से है, जिनकी आबादी में 7 प्रतिशत की गिरावट आई है। वन्यजीवों से जुड़ी 75 प्रतिशत मौतें सर्पदंश के कारण हुई हैं, जिनकी संख्या 2012 में 113 से घटकर 2023 में 34 रह गई है। कुल मिलाकर, वन्यजीवों से भिड़कर इंसानी मौतों की संख्या 2018 में 146 से घटकर पिछले साल 57 रह गई है। फिर भी, इस मामले में संतुष्ट होने का कोई कारण नहीं है। एक चिंताजनक रुझान यह है कि हमले के शिकार कई लोग आदिवासी समुदायों से हैं, जो पारंपरिक रूप से वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व में रहते आए हैं। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और अपने नए घोषित मिशन के हिस्से के रूप में इस संघर्ष से निपटने के लिए केरल के 36 आदिवासी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण और आकलन करना चाहिए।

निष्कर्ष

बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष एक गंभीर चुनौती है, लेकिन सही रणनीतियों और वैज्ञानिक उपायों से इसे कम किया जा सकता है। वनों के संरक्षण, समुदायों की भागीदारी और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से इस समस्या का प्रभावी समाधान संभव है। सरकार और नागरिकों को मिलकर वन्यजीवों की सुरक्षा और मानव जीवन की रक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में काम करना होगा।

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